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Citizen Junction / जनता कक्ष

मेरी औकात क्या है!

Apurv Anand

मेरी औकात क्या है!

शायद आपने सोचा होगा कि मुझसे एक गलती हो गयी है शीर्षक में प्रश्न चिन्ह नहीं दाल कर| निसंदेह मैंने भी इसपर विचार किया मगर फिर साहब एक बात याद आई, "इस कुदरत का अजब बखेड़ा क्या रोकूँ क्या टोकू, ग़लत बनाई दुनिया मैंने कह गए अल्लाह मियाँ" तो बस इसी श्रृंखला में मेरी भी एक गलती|

अब ज़रा आगे बढ़े| बात औकात पर भी तो आये| इस छोटी सी नैसर्गिक जीवन की हालिया समय में तो कोई औकात नही, तो आओ निठल्ला मैं भी, नाकारे तुम भी, चलो दूसरे की जिंदगी पर नज़र लगाएं|

राम जानें कही जलन कम होजाए, क्योंकि आखिर निठल्ला मैं भी, नाकारे तुम भी! लकड़ी लेकर दूसरों की बस्ती में निकल ही रहा था कि पीछे माताराम की सुरीली आवाज आई के राम तो तुझे सुधारने को न राज़ी है, कमस्-कम अल्लाह का तो खौफ़ कर निठल्ले| अभी तो घर में सर्फ लाना बाकी है| तब तक इक अपनी इस जीवन की औकात तो पता लग रही थी, ऐसा लग रहा था की मैं कांग्रेस को दिया हुआ वोट हूँ!

इन कामों को करते करते मसलन मेरा एक महत्वकांशी दोस्त आया| तब मैंने भी बिना वक़्त गवाए उसका हालिया हाल पूछ मारा|

तब उस महत्वकांशी लौंडे ने कहा "दरबदर की ठोकरों का लुत्फ़ पूछो क्या सनम,

आवारगी को हमने तो अल्लाह समझ लिया

जिंदगी से बात की इक कश लिया फिर चल दिए

जिंदगी को धुए का छल्ला समझ लिया|

मगर हरामजादा मन माने कहा चल दिया फिर दूसरों की हैसियत टटोलने| तब फिर पीछे से आवाज़ आयी तो मुड़ा| मगर इस बार न माताराम थी, न वो दोस्त| इस बार तो इक अजनबी थे, मगर ऐसा था की एक दर्शन में वो हरामजादा मन कुंठित होगया और कुंठा में बोला "मैंने तिरी आँखों में पढ़ा अल्लाह ही अल्लाह, सब भूल गया याद रहा अल्लाह ही अल्लाह! मगर ससुरा ये कंमुनालीज़म होती ही ऐसी है की राम-रहीम खफा हुए जान पड़ रहे थे| उन्होंने ने भी आमीन कहकर ऐसी छड़ी घुमाई की न वो अल्लाह मिले, न अल्लाह दिखे, दो साल हुए थे खोज रहा था तब तलक बिहार में भाजपा आगयी थी!

खैर समय का पहिया वो कहाँ रुकता है| राम और अल्लाह के चक्कर में हम भी वहीं जा पहुँचे थे जहा पहले थे, आखिर था तो ये किशोर का एक मामूली आकर्षण ही| वैसे भी किशोर और मधुबाला कहाँ कभी रहे हैं| इतनी दूर तक आ गए लेकिन लेकिन उस दूसरे बस्ती वाले की औकात न पता लगी थी, तब तक वो सामने से खुद चलकर आया और कहा, "क्यों भई आज तेरी लेखनी में मुझे इतना तर्ज़ क्यों? कहीं मैं तेरा एलेक्टोरेल बॉण्ड और तू मेरा सुप्रीम कोर्ट तो नही!"

खैर मैंने भी उसे कहा की कम्बख्त मैं सुप्रीम कोर्ट नही, मैं तो तेरा भाजपा हूँ रे!

तब तक कपड़े धूल गए थे तो आवाज़ आई की जा ज़रा कपड़े फैला दे | उसने कहा मुझे घूरते हुए की मैं कहीं विपक्ष तो नह| तु मुझपर मचल रहा है, जा इकबार उन पत्थरो पे कूद फिर पता लगे की राहुल, येचुरी जैसे लोगों को तु कितना खल रहा है! तब तो उठा लिया पैर मैंने उस मेज़ से, मगर साहब ये तो साफ है की सबके घर में पड़ने मे मेरी काबिलियत है और शायद यही मेरी औकात! अब तो राम ही जाने मेरी औकात , अल्लाह ने तो मुह फेर लिया है, खैर यही है की सवा सौ ग्राम अल्लाह और पौने किलो राम ने मुझे घेर लिया है! और वैसे भी उस दिन के बाद उस अल्लाह से कहाँ कभी मिला, न जाना बस सुनी तो अफवाहे और रलीफ, गलीफ, जलीफ की मारी कुछ आहें!

इस झगड़े में हर बेज़ुबाँ गुल में चहेकने लगें हैं हम, पीसे गये तो और महकने लगें हैं हम|

खैर मैं किस तराज़ू में तौल के पिसा ये तो बात निराली है, आज भी दिल में नितीश जी के पलटने के लिए जगह खाली है!

सब कहे दिया तो ये भी कह दू कि मेरी औकात कुछ नहीं है और अभी मै कपड़े फैला रहा हूँ!

ससुरा ये कंमुनालीज़म है ही ऐसी चीज!

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