
15 अगस्त 2025 को पूरा भारत अपनी आज़ादी की 79वीं सालगिरह मना रहा है। आज़ादी के इतने सालों बाद भी, कई लोगों के मन में यह उत्सुकता बनी रहती है कि आखिर हमने अंग्रेजों की गुलामी से स्वतंत्रता कैसे पाई?
14 और 15 अगस्त 1947 की आधी रात, जब देश के ज्यादातर लोग सो रहे थे, भारत अपनी आज़ादी की कहानी लिख रहा था। आज हर हिंदुस्तानी उस रात के बारे में जानना चाहता है जब हमारे पूर्वजों ने पहली बार एक आज़ाद मुल्क में सांस ली होगी। कैसी रही होगी 14-15 अगस्त 1947 की रात? कैसा रहा होगा दिल्ली का नज़ारा? उस रात, जब भारत और पाकिस्तान अलग हुए और हमें आज़ादी मिली, तो क्या-क्या हुआ था?
14 अगस्त 1947 की शाम देश में एक अजीब सा माहौल था — एक तरफ आज़ादी का उत्साह, तो दूसरी तरफ बंटवारे का दर्द और हिंसा की आशंका। यह सिर्फ एक दिन नहीं था, बल्कि लगभग 200 साल की गुलामी के बाद एक नए युग की शुरुआत थी। हम खुली हवा में सांस लेने को तैयार थे। घड़ी की हर टिक-टिक इतिहास रच रही थी। उस रात जो कुछ हुआ, वह सिर्फ एक समारोह नहीं, बल्कि एक राष्ट्र के पुनर्जन्म का गवाह था।
14 अगस्त 1947 को, जैसे-जैसे शाम ढल रही थी, दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन हॉल में गहमागहमी बढ़ रही थी। उस समय आज के संसद भवन का सेंट्रल हॉल ही कॉन्स्टिट्यूशन हॉल हुआ करता था।
बाहर जोरदार बारिश हो रही थी, लेकिन लोगों का उत्साह कम नहीं था। हज़ारों लोग बारिश में भीगते हुए भी इस ऐतिहासिक पल का गवाह बनने के लिए कॉन्स्टिट्यूशन हॉल के बाहर जमा थे।
शाम 6 बजे से ही ब्रिटिश शासन का प्रतीक झंडा 'यूनियन जैक' उतार दिया गया था, और हर तरफ तिरंगा फहराने की तैयारी हो रही थी।
रात 11 बजे बैठक शुरू हुई, जिसकी अध्यक्षता डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने की। सभी नेताओं ने अपने विचार रखे।
ठीक रात 12 बजे — जब दुनिया सो रही थी, तब भारत जागकर अपनी आज़ादी का स्वागत कर रहा था।
पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपने ऐतिहासिक भाषण में कहा — “कई साल पहले हमने नियति से एक वादा किया था, और अब वह समय आ गया है जब हम उस वादे को पूरी तरह से नहीं, लेकिन काफी हद तक निभाएंगे।” इस भाषण ने वहां मौजूद भारतीयों के दिल में नई उम्मीद और जोश भर दिया।
हालांकि यह खुशी का पल था, लेकिन लॉर्ड माउंटबेटन चिंतित थे, क्योंकि उन्हें पता था कि जहां एक तरफ भारत आज़ादी का जश्न मना रहा है, वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान और पंजाब-बंगाल में बंटवारे की आग लगी हुई थी। पाकिस्तान अपनी स्वतंत्रता 14 अगस्त को ही मना चुका था।
14-15 अगस्त 1947 की रात एक विरोधाभास से भरी थी — दिल्ली और देश के कई हिस्सों में जश्न था, वहीं पंजाब और बंगाल में भयानक हिंसा, और लाखों लोग अपने घर छोड़कर भाग रहे थे।
महात्मा गांधी भी इस जश्न में शामिल नहीं हुए, क्योंकि वे देश के एक और हिस्से में अनशन पर बैठे थे, विभाजन के दर्द को महसूस करते हुए। यह रात याद दिलाती है कि आज़ादी की कीमत बहुत भारी थी — यह सिर्फ एक राजनीतिक जीत नहीं थी, बल्कि करोड़ों लोगों के बलिदान और दर्द से भरी थी।
आज भी लोगों के मन में सवाल उठता है कि हमें आधी रात को ही आज़ादी क्यों दी गई? इसके पीछे कई कारण थे —
भारत-पाकिस्तान का बंटवारा: नेताओं और अंग्रेजों को डर था कि अगर दिन में आज़ादी दी गई और साथ ही बंटवारा हुआ, तो दंगे भड़क सकते हैं और कानून-व्यवस्था संभालना मुश्किल हो जाएगा। इसीलिए आधी रात का समय चुना गया।
लॉर्ड माउंटबेटन का कार्यक्रम: पाकिस्तान को भारत से एक दिन पहले, 14 अगस्त को आज़ादी मिली। उस समय वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन को 14 अगस्त को कराची में पाकिस्तान का सत्ता हस्तांतरण करना था और फिर भारत लौटना था। इसलिए भारत को आधी रात को आज़ादी देने का निर्णय लिया गया।
तथ्य बताते हैं कि ब्रिटिश सरकार ने ऐलान किया था कि पाकिस्तान और भारत, दोनों को 15 अगस्त 1947 को जीरो आवर पर स्वतंत्र किया जाएगा। यही वजह है कि नई दिल्ली में आधी रात को भारत की आज़ादी का ऐलान हुआ।