जिस तरह बॉलीवुड में 'बुलबुल', 'तुंबाड' ,'स्त्री', 'एन एच10' जैसी फिल्मों ने अलग सिनेमा की झांकी दिखाई थी उसी कड़ी की एक और फिल्म अमेज़न ओरिजिनल मूवीस द्वारा पिछले 26 नवंबर को प्रदर्शित हुई है - 'छोरी'छोरी' फिल्म वैसे तो निर्देशक विशाल फुरिया की 2017 की अपनी ही मराठी फिल्म 'लपा-छपी' का हिंदी रीमेक है लेकिन समस्त देश के हिंदी दर्शकों के लिए ऐसी फिल्में एक उपहार की तरह होती है।ये अच्छी बात है कि टी सिरीज़ जैसी बड़ी कंपनियां छोटे बजट की अच्छी फिल्में लेकर आ रही हैं।'छोरी हॉरर,सस्पेंस,थ्रिलर व सामाजिक सरोकार इन सभी प्रकार की फिल्मों की श्रेणी में रखा जा सकता है।फ़िल्म गन्ने के खेतों में भागती एक गर्भवती स्त्री से शुरू होती है जो किसी भूतनी के प्रभाव से अपना पेट स्वयं चीर लेती है। कहानी तुरत शहर में रहने वाले एक जोड़े साक्षी (नुसरत भरूचा) और हेमंत (सौरभ गोयल) से फिर शुरू होती है।साक्षी आठ महीने की गर्भवती है और एक एनजीओ में काम करती है। एक दिन कुछ गुंडे उनके घर मे घुस कर हेमंत को बहुत पीटते हैं क्योंकि हेमंत ने उन्हें व्यवसाय के लिए लिया गया कर्ज़ नहीं वापस किया था।स्थिति ऐसी बनती है कि गुंडों के डर से दोनों कुछ दिनों के लिए घर से दूर छिपने की योजना बनाते हैं और अपने ड्राइवर (राजेश जैस) के कहने पर 300 किमी दूर उसके घर रहने पहुँच जाते हैं जो मीलो फैले गन्ने के खेतों के बीच सुनसान में स्थित है।ड्राइवर की पत्नी भानो देवी (मीता वशिष्ठ) साक्षी की बड़ी देखभाल करती है। साक्षी भी उससे घुलने मिलने लगती है पर औरत-मर्द के फ़र्क को लेकर भानो के पुराने विचार उसे थोड़ा परेशान करते हैं।हेमंत पैसों के इंतजाम के लिए साक्षी को वहीं छोड़कर एक दिन शहर चला जाता है और साक्षी भानो देवी के विचित्र व्यवहार से संदेह से भर जाती है।पति हेमंत के लौटते ही वे दोनों उस जगह से निकलने की कोशिश करते हैं किंतु उन पर प्रहार होता है और जाने नहीं दिया जाता। होश आने पर साक्षी अकेले अजीबोगरीब अनुभवों एवं परिस्थितियों से गुज़रती है और बहुत कोशिशों के बावजूद मीलो फैले गन्ने के खेत के बीच से भागने का रास्ता ढूंढ पाने में असमर्थ रहती है ।अंततः साक्षी सारी सच्चाई जान जाती है और दर्शक भी इन अनुभवों से जुड़कर हॉरर और सस्पेंस को चीरते हुए जब सच्चाई तक पहुंचता है तो भय,करुणा,अचरज जैसी मिश्रित भावनाओं से भरा होता है। फिल्म का नाम 'छोरी' फिल्म की हरियाणवी पृष्ठभूमि के साथ ही अपने मूल सामाजिक संदेश कन्या भ्रूण हत्या को लेकर बहुत सटीक है। फिल्म का निर्देशन और छायांकन बहुत अच्छा है। फिल्म की लोकेशन भी अद्भुत है। सभी कलाकारों का अभिनय अच्छा है लेकिन मीता वशिष्ठ ने अपने चरित्र में उत्कृष्ट अवार्ड विनिंग अभिनय किया है । यदि इस भूमिका के लिए उन्हें कोई अवार्ड न मिले तो दुर्भाग्यपूर्ण होगा। भारतीय फिल्म दर्शकों को ऐसी फिल्में ज़रूर देखनी चाहिए जिसमें निर्देशक ने बिल्कुल अलग स्वाद परोसा हो।JJ Ticket - 4 /5