कभी फ़ुर्सत हो तो आना | Hindi Poetry

पढ़िए वर्षा दास की लिखी हिंदी कविता "कभी फ़ुर्सत हो तो आना"
कभी फ़ुर्सत हो तो आना | Hindi Poetry
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कभी फ़ुर्सत हो तो आना,

इस बेहाल दिल का हाल बताएँगें,

एक अर्सा हो चुका होगा तुमसे मिले,

कुछ तुम सुनाना, कुछ हम सुनाएँगें।

एक चाय की प्याली पकड़े बातें हज़ार कर जाएँगें,

आखिर इतने सालों की कहानियाँ जो सुनानी हैं,

भला कुछ पलों में ये कैसे समाएँगें।

अगर कुदरत की रहमत से बारिश हुई,

तो उन बीते लम्हों को फिरसे जी जाएँगें,

बैठे तो ब़ेशक दो गज की दूरी पर होंगें,

मगर मन ही मन हम दोनों शरमाएँगें।

मानो अगर बत्तियाँ बुझ गई,

जाइज़ है, मैं थोड़ा घबरा जाऊँगी,

लेकिन तुम मुझे तसल्ली देने के लिए अपनी बाहों में थाम लेना,

धड़कनें दोनों की तेज़ होगीं,

पर धीरे-धीरे वो भी सहम जाएँगें।

बत्तियों के जलने पर,

खुद को एक दूसरे के इतना करीब देख,

हम दोनों ज़रा हिचकिचाएँगें,

थोड़ी शर्म , थोड़ी खुशी के मारे हम दोनो हलका मुस्कुराएँगें।

खै़र ये तो मेरे नादान से ख्वाब हैं,

जिनका पूरा होना तो शायद बस में नहीं,

मगर फ़िर भी कभी फ़ुर्सत हो तो आना,

कुछ नहीं तो कमसे-कम इन दूरियों कि वजह बताएँगें।

- वर्षा दास

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