नेपाल में जेन-ज़ी का सोशल मीडिया बैन के खिलाफ भारी प्रदर्शन: 20 लोगों की मौत, 500 घायल

नेपाल में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध के खिलाफ हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों में अब तक 20 लोगों की मौत हो चुकी है और 500 से अधिक लोग घायल हुए हैं।
नेपाल में जेन-ज़ी का सोशल मीडिया बैन के खिलाफ भारी प्रदर्शन: 20 लोगों की मौत, 500 घायल
नेपाल में जेन-ज़ी का सोशल मीडिया बैन के खिलाफ भारी प्रदर्शन: 20 लोगों की मौत, 500 घायल
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नेपाल में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध के खिलाफ हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों में अब तक 20 लोगों की मौत हो चुकी है और 500 से अधिक लोग घायल हुए हैं। हालात बिगड़ने के बाद सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लगाया गया बैन हटा लिया है और हिंसा की जांच के लिए एक कमेटी का गठन किया है, जो 15 दिनों में अपनी रिपोर्ट पेश करेगी।

आखिर नेपाल के युवा क्यों हैं इतने गुस्से में?

सोमवार को सोशल मीडिया बैन के खिलाफ आंदोलन उग्र हो गया। युवाओं ने संसद में घुसने का प्रयास किया और वहां आग लगा दी। पुलिस के साथ उनकी हिंसक झड़प में गोलीबारी भी हुई, जिसमें 20 प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई। हालात को संभालने के लिए काठमांडू में सेना को तैनात करना पड़ा।

आंदोलन के पीछे कारण

1. आंदोलन की जड़ें नेपाल की जनरेशन ज़ेड (1997 से 2012 के बीच जन्मी पीढ़ी) में हैं, जो सोशल मीडिया पर पाबंदी का विरोध कर रही है।

2. 2023 में नेपाल सरकार ने सोशल मीडिया को लेकर गाइडलाइंस बनाई थीं और देश में काम कर रहे सभी ऐप्स को रजिस्ट्रेशन कराने के लिए कहा था। विदेशी कंपनियों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। इसके बाद नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को इन पर प्रतिबंध लगाने का निर्देश दिया।

3. 28 अगस्त 2025 को नेपाल कैबिनेट ने सभी सोशल मीडिया ऐप्स को एक सप्ताह के भीतर रजिस्ट्रेशन कराने का आदेश दिया। किसी भी कंपनी ने इसका पालन नहीं किया। इसके बाद 5 सितंबर को सरकार ने 26 ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया, जिनमें फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर (X), व्हाट्सएप और यूट्यूब जैसे अहम प्लेटफॉर्म शामिल थे।

4. युवाओं ने इस कदम को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला और दुनिया से संवाद करने की उनकी आज़ादी छीनने की कोशिश बताया।

आंदोलन की शुरुआत

“हम नेपाल” संगठन ने इस आंदोलन के लिए काठमांडू में प्रदर्शन की अनुमति मांगी थी, जिसे सरकार ने मंजूरी दे दी। सरकार का अनुमान था कि यह आंदोलन शांतिपूर्ण रहेगा, लेकिन अचानक बड़ी संख्या में युवा सड़क पर उतर आए और पुलिस से भिड़ गए। इसके बाद यह आंदोलन काठमांडू से निकलकर अन्य शहरों में भी फैल गया और हिंसक रूप ले लिया।

प्रदर्शनकारियों की मांगें

प्रदर्शनकारियों ने दो मांगें रखी हैं:

1. सोशल मीडिया पर लगाया गया प्रतिबंध तुरंत हटाया जाए।

2. सरकार और अधिकारियों की भ्रष्ट कार्यप्रणाली को रोका जाए।

प्रदर्शनकारियों में अधिकतर कॉलेज छात्र हैं, जो सोशल मीडिया पर रोक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश मानते हैं।

प्रदर्शनकारियों की गतिविधियां

• प्रदर्शनकारियों ने पूर्व प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल के घर में आग लगा दी।

• पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के आवास के सामने प्रदर्शन किया।

• काठमांडू, ललितपुर और भक्तपुर जिलों में कर्फ्यू लागू करना पड़ा।

• प्रधानमंत्री के. पी. शर्मा ओली के भक्तपुर स्थित आवास में भी आगजनी हुई। माना जा रहा है कि ओली इलाज के नाम पर दुबई जाने की तैयारी में हैं।

आंदोलन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

हालांकि इस आंदोलन का तात्कालिक कारण सोशल मीडिया पर प्रतिबंध है, लेकिन युवाओं का असंतोष लंबे समय से बढ़ रहा था। माओवादी आंदोलन और राजतंत्र की समाप्ति के बाद युवाओं को उम्मीद थी कि भ्रष्टाचार खत्म होगा और नई राजनीतिक संस्कृति जन्म लेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

नेपाल लगातार राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक संकट से जूझता रहा। कोविड के बाद स्थिति और बिगड़ गई। बेरोजगारी और महंगाई ने युवाओं को और परेशान किया। बड़ी संख्या में युवाओं का विदेश पलायन भी जारी रहा, जहां उन्हें अक्सर अमानवीय परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। तीन प्रमुख दल—माओवादी, नेपाली कांग्रेस और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एमाले)—सत्ता की लड़ाई में व्यस्त रहे और समस्याओं का समाधान नहीं कर पाए।

पड़ोसी देशों से प्रेरणा

नेपाल के युवाओं को श्रीलंका (2022) और बांग्लादेश (2024) के आंदोलनों से प्रेरणा मिली है। इन देशों में युवाओं ने बड़े पैमाने पर सत्ता परिवर्तन करवाया। नेपाल के युवाओं का मानना है कि अगर इन देशों में यह संभव हुआ, तो नेपाल में भी बदलाव संभव है।

भारत की प्रतिक्रिया

भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा कि नेपाल में विरोध-प्रदर्शनों के दौरान कई युवाओं की मौत से वह बेहद दुखी है। भारत ने उम्मीद जताई है कि सभी पक्ष संयम बरतेंगे और मुद्दों का समाधान शांतिपूर्ण बातचीत से करेंगे।

इस तरह यह आंदोलन केवल सोशल मीडिया बैन का विरोध नहीं है, बल्कि नेपाल के युवाओं की लंबे समय से जमा हुई नाराज़गी का विस्फोट है।

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