
स्त्री विमर्श, नारीवाद के कई सोपान पार कर लेने के बाद भी शोषणतंत्र आज भी मजबूत है।
"स्त्री भी मनुष्य है, उपभोग की वस्तु नहीं"
मनुष्यों वाली सारी क्षमताएं स्त्री में मौजूद होते हुए भी क्यों वह आज भी उपभोग की वस्तु बनी हुई है। मनुष्यता के रूप में अपनी पहचान बनाने के लिए अपनी शक्ति का वास्तविक अर्थ न समझ आज भी वह क्यों स्वयं उपभोक्ताओं के हाथों की कठपुतली बनने के लिए मजबूर है?
मैं हर स्त्री से विनम्र आग्रह करना चाहूंगी कि पुरातनपंथी समाज में व्याप्त जुमले जो नारी शक्ति को मात्र सुन्दरता की प्रतिमूर्ति समझाने के लिए विवश करते रहे उसकी वास्तविकता से उसे दूर करते चले गए और उसे शक्ति हीन समझने पर विवश कर गए .........
हमें स्वयं अपने पूर्वाग्रहों से बाहर आना होगा। तभी हम महिला सशक्तिकरण जैसे कोरे नारों को वास्तविकता के धरातल पर उतार सकते हैं l
आज महिला दिवस पर मैं सम्पूर्ण स्त्रीजाति से कहना चाहूंगी....
बस अपनी "चारित्रिक दृढ़ता" के साथ स्वस्थ समाज में अपनी सहभागिता के आधार पर ऐसे स्वस्थ समाज की स्थापना करनी होगी जहां जीवनयज्ञ में स्त्री का भी अपना एक हिस्सा हो, जिसे पुरुष अपना क्षेत्र मानता है, वो उसका भी हो....जिस मकान को वह घर बनती है उस पर उसका भी नाम अंकित हो l ताकि जीवन रूपी बगिया में उसे भी एहसास हो कि यह घर जितना पुरुष का है उतना ही अधिकार उसका भी है l पाठशाला में जब बच्चे का दाखिला हो तब उसका भी उतना ही अधिकार हो जितना पिता का l तब कोई अधिकारी यह प्रश्न न कर सके कि इसके पिता का नाम क्यों नहीं है.....जब पिता का नाम लिखा जाता है तब तो प्रश्न नहीं किया जाता कि माता का नाम क्यों नहीं है?यह विडम्बना ही तो है जो नौ माह तक अपने लहू सींच कर अपना जीवन दांव पर लगा बच्चे को जन्म देती है उसे ही अधिकार से वंचित कर दिया जाता है!सही मायने में पुरुष तो इस क्षेत्र में प्रहरी मात्र ही है l
एक नारी के हृदय में सदियों से मौजूद जो प्रेम, सहानुभूति, करुणा, आदर, स्नेह विद्यमान है....
जिसे वो वर्षों से लुटाती आईं हैं, अपने अपनों पर,
इस समाज पर...
उसे ईमानदारी से कायम रखना होगा
वरना कोई एक कोना फिर से खाली रह जाएगा
स्त्रीत्व का, मानवता का.......
अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर नारीत्व गुणों को धारण करने वाली समस्त नारी शक्ति को महिला दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं एवं बधाई।