'भारत की आवाज़' – एक राजनीतिक तंज हिंदी कविता

मगधमान भारत द्वारा
'भारत की आवाज़' – एक राजनीतिक तंज हिंदी कविता
Jaano Junction

वर्तमान सुधरता नहीं, भविष्य के सपने हैं दिखाते,

हर झूठे वादे को कितनी सच्चाई से हैं दर्शाते,

पड़ोसियों से बनती नहीं, बाक़ी देश सवाल हैं उठाते, 

हास्यास्पद पे ला कर है खड़ा किया है भारत को,

और ख़ुद को विश्वगुरु हैं बताते।

रुपए का भाव हो या ग्लोबल हंगर इंडेक्स की सूची,

गर्त में जाता हुआ पर कैपिटा इनकम और बातें सिर्फ़ ऊँची ऊँची।

इकॉनमी की तुलना चीन, अमेरीका नहीं, 

पाकिस्तान और श्रीलंका से हैं करते,

विकसित देशों की तो बात ही छोड़ो,

बांग्लादेश और नेपाल भी हैं हमसे आगे अब रहते।

किसान का आय दोगुना करने का था वादा किया,

दो करोड़ रोज़गार हर वर्ष देने का था इरादा किया,

जुमले और झूठे वादे लेके आयी थी ये सरकार,

और हमें लगा कि होंगे अब अपने सारे सपने साकार।

मीडिया के तो अलग हैं तेवर, अलग ही हैं लय,

पैसा कमाना ग़लत नहीं, मगर ये तो अपने ईमान से भी गये,

बेहतर पत्रकारिता नहीं बेहतर चाटुकारिता की चल रही है होड़,

झूठ बोलो, बार बार झूठ बोलो, बोलो ताबड़तोड़।

इन सब के बीच कुछ ने ग़ज़ब की हिम्मत है दिखलायी,

रवीश कुमार हो या ध्रुव राठी,

दीपक शर्मा हो या साक्षी जोशी,

अजीत अंजुम हो या पुण्य प्रसून बाजपेयी,

पैसों के लिए ज़मीर और देश नहीं बेचा करते,

ये बात इन्होंने क्या ख़ूबसूरती से है बतलायी।

अमीर को और अमीर और गरीब को और गरीब,

बनाने की ऐसी है ये सोच,

आख़िर आटा चावल बाँट के ही तो लेना है सब का वोट।

नग्न कर औरत को जब सड़क पे घुमाया गया,

पहलवान बेटी को जब संसद के बाहर पिटवाया गया,

बिलकिस के दुष्कर्मियों को जब फूल का माला पहनाया गया,

गुजरात में चालीस हज़ार महिलाओं का अपहरण करवाया गया,

और वॉर रुकवादी पापा के प्रचार से सब को उलझाया गया।

ना जाने कैसी है ये कमल की कलाकारी, 

जब हो कोई किसी दूसरे पक्ष का साथी, होता है वो भ्रष्टाचारी,

जब आ जाता है वो इनके पक्ष में, बन जाता है वो सदाचारी।

लद्दाख के अंशन को देख ना सके,

किसान के आंदोलन को सह ना सके,

मणिपुर के आवाम को समझ ना सके,

अरुणाचल की आवाज़ पे कुछ कर ना सके,

जवानों की पुकार को सुन ना सके,

और पुलवामा में ट्रक से आये विस्फोटक को ये सूंघ ना सके,

कुर्सी की लत इस हद तक बढ़ गयी,

की ये कुछ भी महसूस कर ना सके।

बात जब विकास और विश्वगुरु की हो,

तो चाहिए इनको एक टेलीप्रोम्प्टर,

बात जब साइंस और स्पेस की हो,

तो चाहिए इनको एक इंस्ट्रक्टर,

लेकिन बात जब नफ़रत और नकारात्मकता की हो,

तो बोलते ऐसे जैसे धोनी का शॉट हो वो हेलीकॉप्टर।

जिन शिक्षा संस्थानों से इनके नेता भी है पढ़े हुए,

उन्हीं संस्थानों के ख़िलाफ़ ये देश विद्रोही होने की तस्वीर हैं गढ़ते हुए,

जाली प्रचार प्रसार वाली फ़िल्मों से नफ़रत को हैं ये बढ़ाते हुए,

आरोपी हैं जो बॉम्ब ब्लास्ट और दुष्कर्म के मामलों में,

फिर दिखते हैं ये उन्हीं को टिकट बाँटते हुए।

सरकारी संस्थानों को बना दिया है हास्य पात्र,

किया उनका ऐसा ग़लत इस्तेमाल,

नहीं छोड़ा किसी को भी, जिसके हों कमल से अलग विचार,

ख़तरा है धर्म को, ऐसा पाठ है पढ़ाया,

बच्चा हो या बूढ़ा, हर किसी को केवल है भड़काया।

खोखली सरकार ने बना दिया है देश का खोखला भेष,

हर किसी को ख़रीदना, हर किसी को डराना, है इनका उद्देश्य,

चुना हुआ मुख्यमंत्री भी जब जा सकता है जेल,

तो आम जनता के लिए क्या ही बचा है शेष।

तानाशाह के आगे कोई भी नहीं है बढ़ पाया,

ख़ुद की ही पार्टी में सब को कठपुतली है बनाया,

उद्घाटन भी ख़ुद, भाषण भी ख़ुद,

प्रतिनिधित्व भी ख़ुद, और सारे कार्य भी ख़ुद,

दूसरों को बस हवाई अड्डे पर स्वागत करने का काम है पकड़ाया।

मध्यम वर्ग का अस्तित्व ही है मिटाया,

हर किसी को ग़रीबी रेखा के पास है पहुँचाया,

बाँटना पर रहा अस्सी करोड़ लोगों को खाना,

और कहते हैं कि भारत को विकसित है बनाया।

मंदिर वहीं बनेगा ये था सर्वोच्च न्यायलय का आदेश

किया उसके नाम पे भी राजनीति, जैसे हो वो इनका निजी निवेश,

प्राण प्रतिष्ठा में भी ऐसा ढोंग था रचाया,

श्री राम को इन्होंने है लाया, ऐसा पाठ था पढ़ाया।

पैतीस साल तक जिसने भिक्षा माँग के है खाया,

रेलवे स्टेशन पर जिसने चाय भी है बनाया,

ऐसी झूठी कहानी के लेखक ने झूठी बीए एमए की डिग्रियों को भी है चमकाया,

जिसका अपने घर परिवार में भी हो ना सकान,

वो क्या करेगा किसी के मंगलसूत्र का सम्मान।

विपक्ष सत्तर वर्षों तक सत्ते में रही,

तो धर्म को नहीं था कोई ख़तरा,

कमल के दस साल में ही,

डोल गया हिंदुत्व, और आ गये हिंदुत्व के रक्षक,

बचाने भारत का कतरा कतरा,

फैलाया इस झूठे नारे को पूरी ताक़त से, चाहे शाम हो या सवेरा।

महंगाई, बेरोज़गारी, विकास, अर्थव्यवस्था,

के ऊपर बात नहीं नहीं है करते,

मटन, मुग़ल, मुस्लिम, मंगलसूत्र ही दिन रात हैं जपते,

और गोडसे को पूजने वालों के गांधी के आगे ही हैं शीश झुकते।

इनके कार्यालय पर वर्षों तक भारत का झंडा नहीं था फहराया,

नेहरू, इंद्रा की दिन रात नक़ल उतार के उन्हीं को ग़लत है ठहराया, और उन्हीं की कामयाबियों का वर्णन कर,

अपनी नाकामयाबियों को भी है छुपाया।

ग़रीबी हटाने वाली नहीं, ग़रीबी बनाये रखने वाली है इनकी सोच

अनाज और शौचालय तक में ही लेना चाहते हैं ये अपना वोट,

झूठे प्रचार, झूठे आँकड़े, दिखा कर ललचाती है ये सरकार,

अरबों रुपए खर्चे अपना नाम बनाने में, 

चाहे हो वो टीवी या चाहे हो वो अख़बार।

महंगाई पहुँच गयी अपने चरम पर,

चाहे हो राशन या चाहे हो पेट्रोल और डीजल का दर,

इस बार का नारा है इनका चार सौ पार,

ताकि दूध तेल ख़रीदने में ही बिक जाये गरीब का घर और दुआर।

नोट बदल के काले धन को ख़त्म था करना,

जबकि इन्हें तो काले धन को सफ़ेद था करना,

इलेक्टोरल बॉण्ड के नाम पर किया देश का सबसे बड़ा घोटाला,

नहीं रोका इन्हें तो निकाल देंगे ये सब का दिवाला,

कमल तो खिलेगा, पर बना के हर किसी के जीवन को एक नाला।

जब है चुनाव जीतने की इतनी ही गारंटी,

तो क्यूँ ही तोड़नी पड़ी हर किसी की पार्टी,

गाय को मान भगवान,

बीफ कंपनी से पैसा लेने की बस इनकी है नौटंकी,

धर्म को तो बेच ही दिया, देश को भी ना ये बेच हैं दे,

सोच के हर देश भक्त की रूह है काँपती।

कांड हैं इनके इतने बड़े बड़े और महान,

की हो ना सकेगा कुछ पंक्तियों में वो बखान,

थाली भी बजायी, दिया भी जलायी, विश्वास भी किया, वोट भी दिया,

पर दे ना सके ये भारत के आवाज़ को अपना कान,

अब तो केवल बात है बचाने की देश का मान और सम्मान।

कोई भी प्रधानमंत्री नहीं है भारत का राजा,

ना ही है ये जनता उसकी कुचली जाने वाली प्रजा,

वोट देने का हमें अधिकार है,

सरकार बदलने का इस बार विचार है,

विकसित, समृद्ध, आधुनिक, और औद्योगिक भारत से हमें प्यार है,

जो इन सब पे बात और काम नहीं करेगा, बस हमें उससे इंकार है,

सुनाना है सभी को ये भारत की आवाज़, जो लिख रहा बिहार है।

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