The Express

धमाका : जो ज़ोर का न हो सका । Film Review

धमाका : जो ज़ोर का न हो सका । Film Review

Dr Pooja Varma

“जो भी आप न्यूज़ देखते हैं वह सब सच नहीं होता.. क्योंकि सच के लिए वक्त लगता है और वक्त ऑडियंस के पास नहीं है। जैसे आपके (उग्रवादी ) पास बम का कंट्रोल है वैसे ही आडियंस के पास भी एक कंट्रोल है..रिमोट का ..जिसके धमाके से हर न्यूज़ चैनल डरता है।”यही है नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई नई फिल्म 'धमाका' का ब्रह्म वाक्य। न्यूज़ चैनल के बीच बढ़ती प्रतिद्वंद्विता, आपसी संघर्ष टीआरपी और उच्चतम रेटिंग पाने की भूख ने मीडिया जगत की गुणात्मकता को बुरी तरह प्रभावित किया है। निर्देशक व निर्माता राम माधवानी जो 'आर्या' वेब सीरीज और नीरजा' जैसी फिल्मों से अपना निर्देशकीय जौहर दिखा चुके हैं 'धमाका' में धमाका करने से थोड़ा चूक गए हैं ।फिल्म वैसे तो 2013 की कोरियन फिल्म 'द टेरर लाइव' का रीमेक है लेकिन भारतीय दर्शकों के लिए फिर भी विषय नया ही है और एक रोचक बात ये भी है कि इस फ़िल्म को मात्र 10 दिन में शूट किया गया है।अर्जुन पाठक (कार्तिक आर्यन) भरोसा टीवी न्यूज़ चैनल से जुड़ा एक प्राइम टाइम न्यूज़ एंकर है जिसे पदावनति कर अपने ही चैनल के रेडियो एफएम में आरजे बना दिया गया था। एक दिन अचानक एक शख़्स उसे फोन कॉल पर मुंबई सी लिंक ब्रिज को उड़ाने की बात कहता है जिसे अर्जुन मज़ाक समझता है लेकिन अगले ही पल उसके होश उड़ जाते हैं जब अपनी आंखों से सी लिंक को धमाके के साथ उड़ता देखता है।आतंकवादी से एक्सक्लूसिव बातचीत के साथ चैनल की रेटिंग में आने वाले उछाल को देखते हुए वह अपनी बॉस (अमृता सुभाष) से प्राइम टाइम न्यूज़ एंकर के अपने पुराने पद के लिए डील कर लेता है और शुरू होता है आतंक का लाइव टेलिकास्ट और साथ ही आतंकवादी से लाइव बातचीत जो अंत में एक अजीबोगरीब अंजाम तक चलता है। फिल्म कुछ मामलों में अतिवाद से ग्रसित है और कई तथ्य दर्शकों को हजम नहीं होते। जैसे- एक अकेला सामान्य शख्स ,जो किसी आतंकवादी संगठन से भी नहीं जुड़ा है ,मुंबई सी लिंक ब्रिज और बड़ी-बड़ी ऊंची इमारतें धड़ाधड़ ऐसे उड़ाता है जैसे इतना सारा आरडीएक्स उसे दान में मिल गया था। फिल्म में उसे विस्फोटक एक्सपर्ट बताने की कोशिश की गई है परंतु इतने बड़े स्तर पर विस्फोटक खरीदना, मंगाना और पुल व इमारतों के साथ-साथ कान के भीतर बम सेट करने का काम अकेला व्यक्ति कैसे कर सकता है इस ओर दिमाग ना लगा कर देखेंगे.. तभी आनंद आएगा। फिल्म न्यूज़ चैनलों के भीतरी और आपसी डर्टी गेम को उजागर करती है लेकिन जब चैनल प्रोड्यूसर अपने ही एंकर को ब्लैकमेल करती है ..दूसरे चैनलों पर बदनाम करती है और अंततः ..आतंकवादी तक घोषित कर देती है.. तो थोड़ा अविश्वसनीय लगता है। शायद इस पर न्यूज़ चैनल वाले ही बेहतर टिप्पणी या एतराज कर सकते हैं। फिल्म का अंत भी ग़ैरवाजिब सा लगता है। इन सब पर दिमाग ना लगाते हुए यदि फिल्म को सिर्फ मनोरंजन की दृष्टि से देखें तो अच्छा टाइम पास है क्योंकि लगभग डेढ़ घंटे की फिल्म कहीं आपको ऊबने नहीं देती। कार्तिक आर्यन ने ठीक काम किया है पर उनकी आवाज न्यूज़ एंकर के तौर पर सूट नहीं करती । कार्तिक की पत्नी और रिपोर्टर की भूमिका में मृणाल ठाकुर और बॉस के चरित्र में अमृता सुभाष ने अपनी भूमिकाएं सही से निभाई हैं ।..पर सबसे कमाल का अभिनय उग्रवादी के चरित्र में अभिनेता सोहम मजूमदार का है जो पूरी फिल्म में सिर्फ अपनी आवाज़ से ऐसी छाप छोड़ते हैं जो फिल्म को अलग स्तर पर ले जाती है। बिहारी लहजा व उच्चारण को इस बंगाली कलाकार ने ऐसा आत्मसात किया है कि हम अनुमान भी नहीं लगा सकते कि यह कोई ग़ैरबिहारी अभिनेता है। फिल्म का एक गाना -'खोया पाया तूने है क्या' ..को विशाल खुराना का संगीत, पुनीत शर्मा के शब्द और अमित त्रिवेदी का स्वर .. ये तीनों मिलकर यादगार बना देते हैं।फिल्म देखी जा सकती है।JJ Ticket- 2.5 / 5- डॉ पूजा वर्मा , वरिष्ठ पत्रकार व मीडिया एक्सपर्ट

Stay connected to Jaano Junction on Instagram, Facebook, YouTube, Twitter and Koo. Listen to our Podcast on Spotify or Apple Podcasts.

You are great: US envoy meets PM Modi, gifts him signed photo with Trump's message

From Pony Handler's Son to IIT Madras: Know Kedarnath Boy Atul Kumar's Inspiring Journey

Harihar Kshetra Sonepur Fair Faces Indefinite Closure as Villagers and Shopkeepers Protest License Delay

India strongly condemns civillian deaths in Israel-Hamas conflict, says PM Modi

Renewed drilling begins to rescue 40 men trapped in Indian tunnel for fifth day