छठ पूजा का चौथा दिन सबसे पवित्र और भावनात्मक क्षणों में से एक होता है — जब व्रती उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर चार दिनों के कठिन व्रत का समापन करती हैं। इसे “उषा अर्घ्य” कहा जाता है, जिसका अर्थ है भोर की देवी को अर्पित जल। इस दिन का वातावरण अत्यंत शांत, दिव्य और भक्तिमय होता है — गंगा, गंडक, सोन, पुनपुन और अन्य नदियों के घाटों पर लाखों श्रद्धालु ‘छठी मइया’ और सूर्य देव की आराधना करते हैं।
तारीख: 29 अक्टूबर 2025, बुधवार
सूर्योदय का समय: प्रातः 5:55 बजे से 6:25 बजे तक
अर्घ्य का शुभ मुहूर्त: सूर्योदय से लगभग 20 मिनट तक का समय अत्यंत मंगलकारी माना जाता है।
(समय स्थानानुसार थोड़ा भिन्न हो सकता है)
सूर्योदय से पहले तैयारी:
व्रती महिलाएँ सूर्योदय से लगभग एक घंटा पहले घाट पर पहुँचती हैं। सिर पर सूप, ठेकुआ, फल, गन्ना, नारियल, और दीपक लेकर जाती हैं।
भोर की आराधना:
सूरज निकलने से पहले ‘छठी मइया’ की पूजा की जाती है। इस दौरान “छठ मइया के गीत” गाए जाते हैं जो आस्था और भक्ति से वातावरण को भर देते हैं।
सूर्य अर्घ्य देना:
जैसे ही सूर्य की पहली किरण जल में पड़ती है, व्रती जल में खड़े होकर सूर्य देव को दूध, गंगाजल, और अर्घ्य अर्पित करते हैं। इस क्षण को उषा अर्घ्य कहा जाता है।
प्रार्थना और संकल्प:
सूर्य देव से परिवार की सुख-समृद्धि, संतान की रक्षा और जीवन में प्रकाश की कामना की जाती है।
व्रत पारण (समापन):
अर्घ्य के बाद व्रती घर लौटकर प्रसाद ग्रहण करती हैं और चार दिनों से चल रहे निर्जला व्रत का समापन करती हैं।
उषा अर्घ्य केवल एक पूजा विधि नहीं, बल्कि नए जीवन, नए आरंभ और प्रकाश का प्रतीक है।
भोर का यह क्षण मानवीय जीवन में आशा, जागृति और ऊर्जा का संदेश देता है।
सूर्य देव को जीवनदाता और ऊर्जा का स्रोत माना गया है।
छठी मइया को संतान की रक्षक और समृद्धि की देवी के रूप में पूजा जाता है।
यह पर्व नारी शक्ति, तपस्या और प्रकृति के प्रति आभार का प्रतीक है।
पटना, दरभंगा, गया, देव (औरंगाबाद), भागलपुर जैसे स्थानों के घाटों पर इस दिन का नजारा अलौकिक होता है — हजारों दीपक, रंगीन सूप, गीतों की गूंज और भक्तों की भावनाएँ एक साथ मिलकर एक अद्भुत आध्यात्मिक वातावरण बनाते हैं।