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भारत में पिछले 15 साल में ग़रीबी से बाहर आए साढ़े 41 करोड़ लोग:संयुक्त राष्ट्र

एक अंदाज़े के मुताबिक़ भारत में जो 2006/07 में गरीबी दर 55.1% थी वह 2019/21 में 16.4% ही रह गयी|

JJ News Desk

संयुक्त राष्ट्र की माने तो भारत ने ग़रीबी को कम करने में एक अहम मुकाम हासिल किया है, जहां 2006/07 से 2019/21 में लगभग 15 साल के समय में ही, साढ़े 41 करोड़ लोग एक-साथ ग़रीबी से बाहर आने में सफल रहे हैं|

यह बात ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय के गरीबी एवं मानव विकास पहल (OPHI) और संयुक्त राष्ट्र डेवलपमेंट प्रोग्राम (UNDP) द्वारा संयुक्त रूप से ग्लोबल मल्टी-डायमेंशनल पोवर्टी इंडेक्स (MPI) में दर्शाया गया|

इस रिपोर्ट में भारत समेत 25 देशों के का MPI नापा गया| जहां, भारत समेत कई और देश जैसे, कंबोडिया, चीन, कोंगो, होंडोरस, इंडोनेशिया,मोरोक्को,सर्बिया और वियतनाम को लेकर यह कहा जा रहा है कि, यह सभी देश जिस रफ़्तार से प्रगति कर कर रहे हैं, जल्द ही यह अपने देश के रिसोर्सेज को आधा कर सकते हैं| 

फिर भी इन् सभी देशों के मुकाबले देखा जाए तो भारत ने अपनी बढ़ती आबादी(चीन की 140 करोड़ की आबादी को पीछे छोड़ देने का अनुमान है) के मुकाबले ग़रीबी को कम करने में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है| जहां महज 15 सालों में भारत ने साढ़े 41 करोड़ लोगों को ग़रीबी से बाहर निकाल लिया है|

और क्या कहती है रिपोर्ट 

रिपोर्ट के मुताबिक जहां ग़रीबी कम होती हुई नज़र आई है, वहीं COVID-19 की वजह से डेटा जुटा पाने में दिक्कत भी हुई है| एक अंदाज़े के मुताबिक़ भारत में जो 2006/07 में गरीबी दर 55.1% थी वह 2019/21 में 16.4% ही रह गयी|अगर संख्या के हिसाब से देखें तो, 2006/07 में साढ़े 64 करोड़ लोग गरीबी दर में थे, वहीं 2015/16 में 37 करोड़ तो वहीं 2019/21 में 23 करोड़ लोग रह गये|

किन चीज़ों की दर में आई गिरावट (भारत में)  

रिपोर्ट के अनुसार:-        2005/06          2019/21

न्यूट्रीशन से पीड़ित लोग   44.3%                11.8%

बच्चों का कम उम्र में मरना  4.5%                1.5%

खाने का तेल ना मिल पाए 52.9%               13.9%

ऐसे लोग       

पीने का पानी ना मिल पाने 16.4%                2.7%

वाले लोग      

रिपोर्ट की कुछ महत्त्वपूर्ण बातें 

  • रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत उन 19 देशों में से एक है, जिस ने एक ही वक़्त (2005/06 से 2015/16) के दौरान अपनी MPI को आधा कर लिया|

  • 2023, में इस रिपोर्ट के मुताबिक़ 6.1 में से 1.1 बिलियन लोग बहुआयामी तरीके से गरीब 110 देशों में रहते हैं|

  • बच्चों में गरीबे दर 27.7%तो वहीं बड़ों में 13.4 % है|

  • ग्रामीण इलाकों में दुनिया भर में सबसे ज्यादा गरीब लोग रहते हैं|

  • इन सभी आंकड़ों पर संस्था का कहना है कि, “कोरोना काल का डेटा न होने की वजह से पूरे 110 देशों में कोरोना ने गरीबी पर क्या असर डाला, यह बता पाना मुश्किल है|

  • ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट ऑफिस के पेद्रो कोन्सिकाओ ने कहा “अगर 2030 में सस्टेनेबल प्रगति के हिसाब से देखें, तो सभी देश कोरोना से पहले बहुआयामिक गरीबी से निकल ही रहे थे|”

  • UNDP द्वारा जारी एक प्रेस रिलीज़ के मुताबिक़, कंबोडिया,पेरू और नाइजीरिया जैसे देशों ने गरीबी कम होने की प्रगति को दिखाया है, जहां कम्बोडिया को लेकर काफी बातें हैं क्योंकि वहाँ की गरीबी दर 37.7% से 16.6% तक कम हो गयी है| जो पिछले 7.5 सैलून में संख्या के हिसाब से 50लाख 60हज़ार से घटकर 20लाख 80हज़ार हो गयी है|

  • अभी भी बच्चों पर महामारी के असर को मापने के लिए और रिसर्च की ज़रुरत|

  • इसी डेटा की कमी पर ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय की OPHI शाखा की डायरेक्टर सबीना अलकिरे ने कहा कि, “ हम डेटा के अभाव में जी रहे और आधुनिक भविष्य की तैयारी कर रहे हैं, जबकि हमारे पास महामारी से पीड़ित 1.1 बिलियन लोगों की हालत की कोई खबर नहीं है|

  • लेकिन यह चीज़ सिर्फ प्रशनों में बदलाव करके, डाटा वैज्ञानिक , और फण्ड जुटाने वालों को बुलाकर हल कर सकते हैं, ताकि गरीबी से गुज़र रहे लोगों का पता लगाया जा सके|

  • वैश्विक MPI मॉनिटर की मदद से यह जांचा जा सकता है कि, एक व्यक्ति किस तरह गरीबी से गुज़र रहा है और उसे किन तकलीफों का सामना करना पड़ रहा होगा|

MPI को अगर एक गरीबी रेखा के रूप में देखें, तो मालूम पड़ेगा कि यह मुसीबतों का एक ऐसा जाल है जिसमें एक ग़रीब रोज़ फंसता है, उसमें से निकलने की कोशिश करने के लिए|

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