साइबर युग आ चुकाहै ,समाज बदल चुका है । यहजाति-वाति जैसी छोटी बातें कोई मायने नहीं रखती।'... पर नहीं साहब वो दुनिया जिस की बात कर रहे हम अब भी हवा-हवाई ही है । आइए अब धरातल पर लैंडिंगकरते हैं। चाहे अपना नेता चुनना हो या बहू और दामाद आज भी भारत ख़ास कर उत्तर भारतमें एक ही प्रधान मुद्दा है -जाति। गत 23 जुलाई को ओटीटी प्लेटफार्म Zee5 पर रिलीज हुई फ़िल्म '14 फेरे' जाति और ऑनर किलिंग के सत्य को एक नई दास्तानमें लपेट कर पेश करती है। बिहार के जहानाबाद का राजपूत लौंडा संजय सिंहदिल्ली में कॉलेज में जयपुर की जाट छोरी अदिति के प्रेम- वरेम के चक्कर में पड़- पड़ाकर मॉडर्न युवा परंपरानुसार लिव-इन मेरहने लगता है। बचवा भूल गया कि असल में जहानाबाद में बैठल बाबू -माई उसके लिएपरफेक्ट राजपूत छोकरी और मोटा दहेज देने वाला समधी को टापे बैठे हैं ।लड़का घरपहुंचता है तो देखता है कि बाबूजी ने दूसरी जाति के डॉक्टर से भागकर शादी करनेवाली उसकी बहन की तस्वीर पर फूल माला तो चढ़ा ही रखी थी, उसके साथ ही आंगन में अपनी बेटी के लिए कब्र भी खुदवा रखाथा.. बस पकड़ में आने की देर थी ! इसमें पुलिस भी बाबू साहब की मदद में लगी थी। सोयह आइडिया गलती से भी गलत हो जाता।लेकिन लड़का समझ गया कि एक बात पक्की है की शादीके लिए अनिवार्य कैटेगरी फुलफिल कर दियाजाए तो बात बन सकती है। सो कह दिया कि कन्या हमारी पसंद की है और राजपूत है। अबसारा ड्रामा इसी झूठ को बचाने के लिए शुरू होता है थिएटर से नकली माँ-बाप के रोलके लिए बक़ायदा ऑडिशन लेते हैं। एक ही जोड़ी नकली मां-बाप को दोनों के घरवालों सेमिला कर दो अलग-अलग दिन दो शहरों में दो बार शादी यानी 14 फेरे का प्लान बनता है।उसके बाद फिर थोड़ी बहुत चुहल..थोड़ा भागम भाग .. और फिर ,भांडा तो आखिरभांडा है फूटने के लिए ही बनता है।विक्रांत मेसी अपने अभिनयका जो खंभा गाड़ चुके हैं ,इस फिल्म में भीमज़बूती से गड़ा है। कृति खरबंदा भी सुंदर है, ठीक-ठाक है। बिहार के बाबू साहब के रोल में अपने खांटीबिहारी विनीत कुमार हैं तो कौनो शक का गुंजाइशे नहीं है। गौहर खान को भी कॉमेडीकरते पहली बार देखा तो बुरी नहीं लगी। हीरो के चचेरे भाई का रोल करने वाले कापक्का बिहारी टाइप एक्टिंग अच्छा लगा ,पर बताने के लिए उसका नाम ठीक से पता ही ना चला ..शायद मोहसिन है। म्यूजिक मेंतो कुछ जान हइए नहीं है फिल्म में तो म्यूजिक डायरेक्टर का नाम जानकर कीजिएगा का ?फिर भी बता देते हैं - राजीव भल्ला और जैम 8 । हाँ !डायरेक्टर वाली कुर्सी पर हैं देवांशुसिंह।तो भैया फिल्म में कमीकहां है जो हम से पूछोगे तो हम कहेंगे डायरेक्टर और स्क्रिप्ट में है। सिनेमा औरमज़ेदार बन सकता था । हम बहुत सेल्फ एफर्ट से हंसने का कोशिश किये पर सिर्फ मुस्कुरा पाए। बाकी आपका आप जानें।अभीक्या है कि ऑनर किलिंग जैसे भारी -भरकम मुद्दे पर हल्की-फुल्की फिल्म बनाई है...सो देख लो।वैसे भी कौन सा टिकट 300+ पॉपकॉर्न 500+ पेप्सी 100+पेट्रोल 100=₹1000/- लगने जा रहे हैं, ओटीटी पर ही तो देखना है।